दरिया (dariya)

Sunday, January 16, 2005

 

बुल्लेया की जाना मैं कौन

बुल्लेया की जाना मैं कौन
to me, I am not known
न मैं मोमिनविच मसीताँ
Not a believer inside the mosque
न मैं कुफर दीयँ रीताँ
Nor a pagan disciple of false rites
न मैं पाकाँ विच पलीताँ
Not the pure amongst the impure
न मैं मूसा न फरहौन
Neither Moses, nor the Pharoh

बुल्लेया ! की जाना मैं कौन

न मैं अन्दर वेद किताबाँ
Not in the holy Vedas,
न विच भंगाँ ना शराबा
Nor in opium, neither in wine
न विच रिन्दाँ मसत खराबाँ
Not in the drunkard`s intoxicated craze
न विच जागाँ ना विच सौं
Niether awake, nor in a sleeping daze

बुल्लेया ! की जाना मैं कौन

ना विच शादी ना घमनाकी
In happiness nor in sorrow, am I
ना मैं विच पलीती पाकी
Neither clean, nor a filthy mire
ना मैं आबी ना मैं खाकी
Not from water, nor from earth
ना मैं आतिश न मैं पावँ
Neither fire, nor from air, is my birth

बुल्लेया ! की जाना मैं कौन

ना मैं अरबी ना लाहौरी
Not an Arab, nor Lahori
ना मैं शहर नगौरी
Neither Hindi, nor Nagauri
न हिन्दू न तुरक पेशावरी
Hindu, Turk (Muslim), nor Peshawari
न मैं रैन्दा विच नदौँ
Nor do I live in Nadaun

बुल्लेया ! की जाना मैं कौन

ना मैं भेद मजहब दा पाया
Secrets of religion, I have not known
ना मैं आदम हव्वा जाया
From Adam and Eve, I am not born
ना मैं अपना नाम धराया
I am not the name I assume
ना विच बैठाँ ना विच भौं
Not in stillness, nor on the move

बुल्लेया ! की जाना मैं कौन

अव्वल आखिर आप न जाना
I am the first, I am the last
न कोई दूजा होर पेहचाना
None other, have I ever known
मैं थों होर ना कोई सयाना
I am the wisest of them all
बुल्लेया ! ओ खद्दा है कौन ?

बुल्लेया ! की जाना मैं कौन

Tuesday, January 11, 2005

 

हनुमान चालीसा

श्री गुरु चरण सरोज रज, निज मन मुकुर सुधार |
बरनौ रघुवर बिमल जसु , जो दायक फल चारि |
बुद्धिहीन तनु जानि के , सुमिरौ पवन कुमार |
बल बुद्धि विद्या देहु मोहि हरहु कलेश विकार ||

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर, जय कपीस तिंहु लोक उजागर |
रामदूत अतुलित बल धामा अंजनि पुत्र पवन सुत नामा ||

महाबीर बिक्रम बजरंगी कुमति निवार सुमति के संगी |
कंचन बरन बिराज सुबेसा, कान्हन कुण्डल कुंचित केसा ||

हाथ ब्रज औ ध्वजा विराजे कान्धे मूंज जनेऊ साजे |
शंकर सुवन केसरी नन्दन तेज प्रताप महा जग बन्दन ||

विद्यावान गुनी अति चातुर राम काज करिबे को आतुर |
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया रामलखन सीता मन बसिया ||

सूक्ष्म रूप धरि सियंहि दिखावा बिकट रूप धरि लंक जरावा |
भीम रूप धरि असुर संहारे रामचन्द्र के काज सवारे ||

लाये सजीवन लखन जियाये श्री रघुबीर हरषि उर लाये |
रघुपति कीन्हि बहुत बड़ाई तुम मम प्रिय भरत सम भाई ||

सहस बदन तुम्हरो जस गावें अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावें |
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा नारद सारद सहित अहीसा ||

जम कुबेर दिगपाल कहाँ ते कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते |
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा राम मिलाय राज पद दीन्हा ||

तुम्हरो मन्त्र विभीषन माना लंकेश्वर भये सब जग जाना |
जुग सहस्र जोजन पर भानु लील्यो ताहि मधुर फल जानु ||

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख मांहि जलधि लाँघ गये अचरज नाहिं |
दुर्गम काज जगत के जेते सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ||

राम दुवारे तुम रखवारे होत न आज्ञा बिनु पैसारे |
सब सुख लहे तुम्हारी सरना तुम रक्षक काहें को डरना ||

आपन तेज सम्हारो आपे तीनों लोक हाँक ते काँपे |
भूत पिशाच निकट नहीं आवें महाबीर जब नाम सुनावें ||

नासे रोग हरे सब पीरा जपत निरंतर हनुमत बीरा |
संकट ते हनुमान छुड़ावें मन क्रम बचन ध्यान जो लावें ||

सब पर राम तपस्वी राजा तिनके काज सकल तुम साजा |
और मनोरथ जो कोई लावे सोई अमित जीवन फल पावे ||

चारों जुग परताप तुम्हारा है परसिद्ध जगत उजियारा |
राम रसायन तुम्हरे पासा सदा रहो रघुपति के दासा ||

तुम्हरे भजन राम को पावें जनम जनम के दुख बिसरावें |
अन्त काल रघुबर पुर जाई जहाँ जन्म हरि भक्त कहाई ||

और देवता चित्त न धरई हनुमत सेई सर्व सुख करई |
संकट कटे मिटे सब पीरा जपत निरन्तर हनुमत बलबीरा ||

जय जय जय हनुमान गोसाईं कृपा करो गुरुदेव की नाईं |
जो सत बार पाठ कर कोई छूटई बन्दि महासुख होई ||

जो यह पाठ पढे हनुमान चालीसा होय सिद्धि साखी गौरीसा |
तुलसीदास सदा हरि चेरा कीजै नाथ हृदय मँह डेरा ||

पवन तनय संकट हरन मंगल मूरति रूप |
राम लखन सीता सहित हृदय बसहु सुर भूप ||

Monday, January 10, 2005

 

کبھی کبھی

کبھی کبھی سوچتا ھوں کہ خعامخع اردو سے ھنری کا فاسا تۓ کيا ۔ کيا فرق پڈتا ؟
ويسے بھی سب کـچھ انگريزی ھونے والہ تھا ۔

اور فر اتنا مسلہ 'اسکرپٹ کہ کيوں بنتا ھے ؟ سب کچھ انگريزی ہونے کو کوی روک نہيں سکتا مگر اپنی زبان کا داگ بجانا اور
باقی زبانوں کو نيچا دکھانا بنر نہيں ہوگا ۔

لڑو مر مٹو ! یہی لکھا ہے ہنروستانيوں کی قسمت میں ۔

Sunday, January 09, 2005

 

सद्वचन

आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महारिपुः |
न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः||


अयंनिजोपरंवेति गणनालघुचेतसाम्|
महात्मनांतुवसुधैवकुटुम्बम्||



असितगिरिसमं स्यात् कज्जलं सिन्धुपात्रे |
सुरतरुवर शाखा लेखनी पत्रमुर्वी ||
लिखति यदि गृहीत्वा शारदा सर्वकालं|
तदपि तव गुणानाम् ईशपारं न याति ||

 

जय रघुनन्दन जय सियाराम

ईश्वर के स्मरण के साथ मेरे हिन्दी ब्लौग का आरम्भ हो | वो बात और है ये कि विदेशी मुल्क में पड़े भूमण्डलीकरण के लाभ लेते हुवे हो रहा है | अपने मुल्क में अधिकतर "कुशाग्र" भारतीय जो अमेरिकी कम्पनियों के लिये "सौफ्टवेयर" लिख रहे होंगे, मेरे जैसे मूर्ख के "प्योर" हिन्दी में रचित, और कम्प्यूटर युगे राम का नाम लेने वाले ब्लौग को देख कर हँसेंगे|

दुर्भाग्य से मैं उन्हें शाहरुख करीना सरीखे नकली भारतीयों सा बनने देने से रोक नहीं सकता | जहाँ से मैं देखता हूँ, मुझे वो ही हास्यास्पद लगते हैं | बस मलाल इतना है कि शाहरुख खान या किसी और बौलिवुडिया कौपीकैट पर मुल्क की हसीनाओं के मरने को मैं रोक नहीं सकता | पर ज्यादा फर्क भी नहीं पड़ता|

जय राम जी की !

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