दरिया (dariya)

Monday, October 24, 2005

 

my latest attempt at translation

आगे आगे बढना सीखो,
आलस्य त्याग कर बनो रवानी|
कभी किसी से न तुम झगड़ना,
हो हर बाल यूं तुम्हारा साथी |

करती हर डाल को कैसे
मधुभाषी कोयल गुंजायमान |
कैसे रंगबिरंगे पक्षी देखो
बनें इस जग की रंगत और जान |

मुर्ग जो चुगता भूमि से दाना,
मिलकर साथ उसके खेलो|
हो वो काला कौवा ही क्योँ न,
आदर उसका भी करना सीखो|

देती गाय जो दूध हमें,
है कितना पावन उसका ये दान|
सहज बना जो मित्र मनुष्य का,
होता कितना सादा हर श्वान|

अश्व जो खींचें बग्घी को या,
वो बैल जो खेतों को सीचें|
भोली बकरी जो बंधी अपने घरों से,
रक्षक हो तुम आखिर इन सबके |

उठकर प्रातः बेला में तुम
साधन बनो इक मधुर गीत का|
सायंकाल हर करना व्यायाम,
प्रकृति में रखो यूं अपनी दिनचर्या |

झूठ का न बनना तुम साधन
बुरा न कहना कभी किसी से|
ईश्वर जब हो साथ हमारे,
डरना क्यों कभी अमंगल से |

कोई जाति ना बाँटे मानवता को,
है भेदभाव पाप सबसे बड़ा,
न्याय, ज्ञान, भ्रातृत्व और शिक्षा,
इन चारों से सजे मानवता|

रखकर प्रेम सबके लिये हृदय में,
ईश्वर के सत्य को, सत्य में ईश्वर को देखो|
बनकर सख्त हीरे की तरह,
मानव‍‍‍जीवन में ऐसे तुम दमको|

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