चले थे साथ मिलके चलेंगे साथ मिलकर तुम्हे रुकना पड़ेगा मेरी आवाज़ सुनकर
हमारी जान लेंगी तुम्हारी ये अदाएं
हमें जीने न देंगी तुम्हारी ये निगाहें
समझ लो बात दिल को तुम्हें देंगे दुआएं
चले थे साथ ..
बड़ा प्यासा है ये दिल इसे मदहोश कर दो
भड़क उठे है शोले इन्हें खामोश कर दो
हमारा होश ले लो हमें बेहोश कर दो
I am logging here the instances in Upanisads where humanity is compared with creation, supporting the idea that man is part of creation and that of the creator itself. From upanisadic knowledge, the creator can't be distinguished from the creation. I hope to get this across through the various shlokas.
KaTha Upanishad:6
अनुपश्य यथा पूर्वे प्रतिपश्य तथाऽपरे।
सस्यमिव मर्त्यःपच्यते सस्यमिवाजायते पुनः।।
( सस्य= corn ) The way corn grows in the fields, we ourselves are born and re-born, doing and re-doing things that our forefathers did)
अंडा कैसे जला दिया भाई, ये नहीं समझ में आया और वो भी उबालते वक्त? वो तो बिल्कुल भी नहीं समझ आया।
अच्छा समझाता हूँ, आज तक मैं यही समझता आया था कि अंडे उबालने में कभी कोई गलती नहीं हो सकती। मुझे नहीं पता था कि पानी इतनी जल्दी उड़ सकता होगा। यहाँ पानी तो उड़ा ही, उसके बाद अंडे भी जल गये, मुझे पूरा यकीन है कि अंडों में कोई खामी रही होगी । आज कल बायोटेक से कैसे अंडे बन सकते हैं किसी को पता नहीं। मेरे दिमाग में यही पिक्चर बनी हुई थी कि अंडे पानी में टनटन तब तक उबलते रहते हैं जब तक वो ठोस ना हो जाएँ। अब पत्थर जैसी ठोस चीज जलती है कभी क्या भला बताओ तो। अगर मेरा लोजिक समझ ना आया तो पत्थर जलाने का जतन करो कभी। पत्थर नहीं जलते कभी। पता नहीं कैसे जल गये। काश मैं सोने नहीं चला गया होता, न इतना वक्त जाया होता है और ना ही खाली पेट होता।