दरिया (dariya)

Monday, March 27, 2006

 

अविस्मरणीय..

भारतेन्दु का लिखा ये टुकड़ा आज भी अक्षरशः सत्य है.

तीन बुलाये तेरह आवें
निज निज विपदा रोई सुनावें
आँखों फूटे भरा न पाये
क्यों सखी साजन? नहीं! ग्रैजुएट..

Comments:
क्या बात है!
भारतेन्दु कि मदद से सही खाका खींचा है आपने आज के स्नातक का ।:)
 
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