दरिया (dariya)

Monday, March 06, 2006

 

उल्टा सीधा

गुरुजी ने कहा कि बस तीन मर्तबा ऐसा होता है आदमी की जिन्दगी में कि लगेगा बस अब शादी के बिना मैं अधूरा हूँ| अगर वो तीन बार निकाल ले गये तो बस रास्ता निकल आया जिन्दगी का | वो लोग ही किसी विचार को अपना जीवन समर्पित कर सकते हैं जो ब्रह्मचर्य का निर्वहन कर सकें | नारी में सहारा खोजने वाले बलहीन और निर्भर बन जाते हैं|

ये सुन कर मुझे हँसी छूट पड़ी, पर इतने साल निकल जाने के बाद कुछ सरफिरों को देखकर ये लगता है कि काश ये सच ही होता, और ये अधूरापन बस तीन बार ही महसूस होता | क्या खूब होती वो आजादी जिसमें किसी औरत की फिक्र करने पर मजबूर न करती| कितनी विस्मयकारीहोती वो धरती जहाँ मानव अपनी इच्छा को वास्तव में बदलनें में रत होते बजाय इसकी फिक्र करने की कि सबसे खूबसूरत लडकी क्या पसन्द करेगी | पर शायद प्रकृति भी इतनी नासमझ नहीं, इसीलिये नारी का सृजन हुआ होगा| नारी अपने निर्णय से ही पुरुष का निर्माण करती है | जैसे वो संस्कार से अपने पुत्र का निर्माण करती है वैसे ही वो अपने जजमेंट से उत्तम पुरुष का चयन करती है| यही कारण है कि उसे प्रकृति और विनाशकारी शक्ति के रूप में पूजा जाता है| उसकी चयन शक्ति के रूप में प्रकृति का नियम निहित है | अगर वो अपनी चयनशक्ति को खोकर केवल सांसारिक सुखों के भोग की चेष्टाकरने लगे, तो वो संस्कृति का विनाश ही करेगी |

हमारे भारतवर्षमें अभी यही हो रहा है | नारी की चयनशक्ति जैसे सदियों पहले शास्त्रार्थ से निर्मित होती थी, आज वो डिस्क और धनलुभावन से होती है | आंग्लसभयता ने हमारे पुरुषों को तो निर्गुण कर ही दिया था, अब नारी भी भारतीयसंस्कृति में आस्था खो चुकी है|

ये अज्ञान के कारण ही है | हमारे अज्ञान का मूर्तरूप औरत है, सारा अज्ञान उसपर प्तभाव डालता ही है, और हमारी संस्कृति का ह्रास भी उसके माध्यम से अनवरत हो रहा है | ऍक तरफ वो सृष्टि की सहायका है तो दूसरी ओर वो लालसा ‌और पिपासा की वस्तु | इस सम्भ्रम के कारण नारी हमारी सभ्यता में कभी उचित स्थान नहीं प्राप्त कर पाती | ऐसी परिस्थिति में उसे घुटन होना और पश्चिम की ओर रुख करना लाजमी है| जैसे शास्त्रों मे लिखा थाः

यत्र नार्यस्तु ... सर्वेतत्राफलाःकृयाः ||

तदनुसार हमारी संस्कृति निष्फल ही हो रही है|

Comments:
अनुराग जी, लगता है कि इतनी छोटी उम्र में ही आप को बहुत बड़ा झटका लगा जिससे आप ऐसे निराशावादी हो रहे हैं. आशा है कि आप को जल्द ही आप की मनपसंद नारी हँस कर प्यार से देख कर, भारतीय संस्कृति की मर्यादा में रह कर भी, अपने हृदय पट खोल कर बुलायेगी और आप की मनोकामना पूरी करेगी. :-)
सुनील
 
Post a Comment

Subscribe to Post Comments [Atom]





<< Home

Archives

January 2005   April 2005   July 2005   September 2005   October 2005   December 2005   March 2006   November 2006   June 2008   November 2008   May 2011  

This page is powered by Blogger. Isn't yours?

Subscribe to Posts [Atom]