दरिया (dariya)

Friday, September 16, 2005

 

मातृभाषा

किन्तु फिर भी हिन्दी में लिखने का अपना ही आनन्द है | जैसे मेरे "डेसी" भाई लोग पंजाबी ऍमसी की धुन पर फिरंगियों को थिरकता देख बिदक जाते हैं वैसे ही मैं जहाँ कहीं हिन्दी की उपस्थिति देखता हूँ बावला सा हो उठता हूँ, लगता है जैसे जीवनस्वप्न साकार हो गया| किन्तु वो सब भी ऍक भुलावा ही है ठीक इस पंजाबी ऍम सी गीत जैसा| जब गाना खत्म होगा, सब कुछ वापस अपने रास्ते पर होगा| बल्कि मैं तो पंजाबी ऍमसी को बेहतर मानता हूँ क्योंकि उसका बुना मायावी सन्सार उसके संगीत का प्रभाव ज्यादा देर तक रहता है |

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