दरिया (dariya)

Wednesday, July 13, 2005

 

अलविदा

पुनः लिख रहा हूँ हिन्दी में, उस सभ्यता की समाप्ति का मातम मनाने जिसने मुझे बड़ा किया था| मेरे भाई बंधु मुझे ये समझाने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे कि भारतीय सभ्यता शाश्वत है और उसका बोध ब्रिटेन और अमरीका में बसे दिखावटी भूरी चमड़ीवाले विदेशियों के इन तमाम झूठे नाममात्र रीति‍वाजों जैसे कि शादी के नाच वगैरह में सम्भव है |

परंतु मैं हार सी मान चुका हूँ | इस हिन्दी में लिखने के लिये भी स्वयं मैं ही शेष हूँ | संस्कृताधारित हिन्दी बस अंग्रेजी शब्दों का पर्याय निकाल लेने में ही अपने आपको श्रेष्ट समझ लेती है | उसका अस्तित्व बस भारत‍‍भूमि में आंग्ल‍सभ्यता का ऐसा झंडा लहराना मात्र है जिसके नीचे भारतीयों को झुकने में कोई संकोच न हो | स्‍वभाषा होने का, भारत‍ विचार का वहने करने का, उसका कहीं उपयोग नहीं होता | पत्रकारिता‍, विज्ञान में ये भाषा भारत को उपस्थिति नहीं इंगित करती, वहाँ तो उसका नामोनिशान तक नहीं है | हिन्दी का उपयोग नौटंकी के लिये होता है, हर प्रकार की, चाहे वो भाषा के नाम पर लड़ते राजनेताओं का हो, या बौलीवुड की नकलची पलटन का |

भारतीय आंग्लभाषियों का वर्चस्व स्वीकार कर चुके हैं | ये सौफ्टवेयर ज्ञान, ये कस्टमर सपोर्ट, पाश्चात्य संस्कृति कि गंदगी उठाने वाले काम हैं | इस कार्य के महिमामंडन से भारत का सर ऊँचा नहीं होता, बल्कि नीचे गिरता है | इससे विकास भी उन्हीं का होता है जो अपने आपको पश्चिम को बेचने को तैयार हैं | अब भारतीय पाश्चात्य संस्कृति को टक्कर देने या उसके प्रतियोगी होने का नहीं सोच सकते, वो बस पश्चिम को अपनाने के लिये आपस में ही संघर्ष कर सकते हैं | ऐसा ही एक प्रभाव भारत का सांस्कृतिक विभाजन है, जहाँ बिहारियों और अन्य आंग्लविरोधी राज्यों, व्यक्तियों नीचा और गँवार समझा जाता है |

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