भारतेन्दु का लिखा ये टुकड़ा आज भी अक्षरशः सत्य है.
तीन बुलाये तेरह आवें
निज निज विपदा रोई सुनावें
आँखों फूटे भरा न पाये
क्यों सखी साजन? नहीं! ग्रैजुएट..
गुरुजी ने कहा कि बस तीन मर्तबा ऐसा होता है आदमी की जिन्दगी में कि लगेगा बस अब शादी के बिना मैं अधूरा हूँ| अगर वो तीन बार निकाल ले गये तो बस रास्ता निकल आया जिन्दगी का | वो लोग ही किसी विचार को अपना जीवन समर्पित कर सकते हैं जो ब्रह्मचर्य का निर्वहन कर सकें | नारी में सहारा खोजने वाले बलहीन और निर्भर बन जाते हैं|
ये सुन कर मुझे हँसी छूट पड़ी, पर इतने साल निकल जाने के बाद कुछ सरफिरों को देखकर ये लगता है कि काश ये सच ही होता, और ये अधूरापन बस तीन बार ही महसूस होता | क्या खूब होती वो आजादी जिसमें किसी औरत की फिक्र करने पर मजबूर न करती| कितनी विस्मयकारीहोती वो धरती जहाँ मानव अपनी इच्छा को वास्तव में बदलनें में रत होते बजाय इसकी फिक्र करने की कि सबसे खूबसूरत लडकी क्या पसन्द करेगी | पर शायद प्रकृति भी इतनी नासमझ नहीं, इसीलिये नारी का सृजन हुआ होगा| नारी अपने निर्णय से ही पुरुष का निर्माण करती है | जैसे वो संस्कार से अपने पुत्र का निर्माण करती है वैसे ही वो अपने जजमेंट से उत्तम पुरुष का चयन करती है| यही कारण है कि उसे प्रकृति और विनाशकारी शक्ति के रूप में पूजा जाता है| उसकी चयन शक्ति के रूप में प्रकृति का नियम निहित है | अगर वो अपनी चयनशक्ति को खोकर केवल सांसारिक सुखों के भोग की चेष्टाकरने लगे, तो वो संस्कृति का विनाश ही करेगी |
हमारे भारतवर्षमें अभी यही हो रहा है | नारी की चयनशक्ति जैसे सदियों पहले शास्त्रार्थ से निर्मित होती थी, आज वो डिस्क और धनलुभावन से होती है | आंग्लसभयता ने हमारे पुरुषों को तो निर्गुण कर ही दिया था, अब नारी भी भारतीयसंस्कृति में आस्था खो चुकी है|
ये अज्ञान के कारण ही है | हमारे अज्ञान का मूर्तरूप औरत है, सारा अज्ञान उसपर प्तभाव डालता ही है, और हमारी संस्कृति का ह्रास भी उसके माध्यम से अनवरत हो रहा है | ऍक तरफ वो सृष्टि की सहायका है तो दूसरी ओर वो लालसा और पिपासा की वस्तु | इस सम्भ्रम के कारण नारी हमारी सभ्यता में कभी उचित स्थान नहीं प्राप्त कर पाती | ऐसी परिस्थिति में उसे घुटन होना और पश्चिम की ओर रुख करना लाजमी है| जैसे शास्त्रों मे लिखा थाः
यत्र नार्यस्तु ... सर्वेतत्राफलाःकृयाः ||
तदनुसार हमारी संस्कृति निष्फल ही हो रही है|